कलयुग का अनूठा अस्त्र !

Posted 1:43 am by व्‍यंग्‍य-बाण in लेबल: , ,
यह तो पढ़ी-सुनी और टीवी पर देखी हुई कहानियां है कि कभी सतयुग, द्वापर में ब्रह्मास्त्र नामक एक महान हथियार हुआ करता था, जो एक बार कमान से निकल जाए, तो खाली नहीं जाता था। असुरों के आतंक से दुखी देवगण त्रिदेवों की शरण में पहुंच जाते थे, उसके बाद यथासंभव अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करके देवताओं को मुक्ति दिलाई जाती थी। कलयुग में काफी कुछ बदला हुआ है। इन्द्रदेव की सभा में नर्तकियों का मनमोहक नृत्य देखने को मिलता था, कलयुग में बालीवुड ने इसका तोड़ निकाल लिया आईटम सांग के रूप में, भला हो फिल्मकारों का जो बिना किसी वजह के, अपनी फिल्मों में लोगों को ऐसी चीजों के दर्शन कराते हैं, जो आम लोगों को यथार्थ में उपलब्ध होना संभव नहीं। बात ब्रह्मास्त्र की हो रही थी, तो अचानक ही मुझे याद आया कि आजकल एक अस्त्र का चलन तेजी से बढ़ा हुआ है। देवताओं के युग में ब्रह्मास्त्र अभेद होता था, मानवयुग में चप्पल नाम का अस्त्र काफी प्रसिध्दि हासिल कर रहा है। माना कि इसे पैरों पहना जाता है, लेकिन जब यह किसी के सिर पर पड़ता है तो उसे दिन में तारे दिख जाते हैं। कलयुग में ब्रह्मास्त्र या अन्य सिध्द अस्त्र तो रहे नहीं, तो सबसे सुविधाजनक लगने वाला यह अस्त्र प्रयोग में लाया जा रहा है। कहावत है कि जूती, चप्पल चाहे चांदी की हो या सोने की, रहेगी तो पांवों में ही। लेकिन जब यह किसी पर पड़ती है या फेंकी जाती है तो अखबारों के प्रथम पृष्ठ की सुर्खियां बनती हैं और इसका प्रयोग करने वाले को रातों रात प्रसिध्दि मिल जाती है। मुझे तो लगता है कि देवताओं को इस बात से मानवों से ईर्ष्या भी हो सकती है कि उन युगों में अखबार क्यों नहीं छपते थे, जिससे कि ब्रह्मास्त्र की महानता का बखान स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो पाता। जिस जिस पर चप्पल-जूते चले, उन्हें तो लोग पहले से जानते थे, लेकिन जिसने इसका प्रयोग किया, उसे पूरे देश के लोग एक ही दिन में जानने लग गए। वैसे भी संसद, विधानसभाओं में चप्पलें चलने का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। अब देखिए न, कामनवेल्थ गेम्स पर भ्रष्टाचार की कालिख पोतने वाले बेचारे कलमाड़ी पर एक गबरू जवान, जोश खरोश से परिपूर्ण युवा ने चप्पल फेंक दी, इसके पहले चिदम्बरम्, आडवाणी आदि आदि पर भी इसी कैटेगिरी के अस्त्र का प्रयोग किया जा चुका है। एक भाई जरनैल सिंह भी हैं, जिन्होंने चप्पल का मान बढ़ाया। चप्पल का महत्व दिनों-दिन बढ़ रहा है, कारण यह है कि ब्रह्मास्त्र को हासिल करने के लिए कठिन तप करने पड़ते थे, चप्पल तो हर गांव शहर की दुकानों में उपलब्ध है, इसे पहनना लोगों की आदत में शुमार हो चुका है, इसे पहनकर घूमने-फिरने पर भी कोई पाबंदी नहीं है और जब जैसा मौका लगे उपयोग भी कर सकते हैं। इसे सिर्फ धार्मिक स्थलों के भीतरी भाग में पहनकर जाने पर पाबंदी है, लेकिन यह भी सत्य है कि अपने देवी-देवताओं को मनाने मंदिर पहंचे अधिकतर भक्तों का ध्यान पूजा पाठ में कम, अपनी चप्पल पर ही ज्यादा रहता है, कि कहीं इसे कोई चोरी करके न ले जाए। यह बात मैंने किसी बुजुर्ग से सुनी है कि अगर मंदिर से चप्पल चोरी हो जाए तो कई कष्ट दूर हो जाते हैं, चोरी करने वाला हमारे कष्ट चप्पल के साथ खुद पर ले लेता है। मैं जब भी किसी धार्मिक स्थल जाता हूं तो सोचता हूं कि काश कोई मेरी चप्पल चुरा ले, ताकि शनिदेव द्वारा दिए जाने वाले कष्ट भी मुझसे दूर हो जाएं। लेकिन मेरी यह मुराद अब तक पूरी नहीं हुई, मेरे आल-औलादों, श्रीमतियों सॉरी सिर्फ एकमात्र श्रीमति जी की चप्पल कई बार मंदिर के बाहर से चोरी हो चुकी है, पर मेरी इस मन्नत को भगवान ने अब तक सुना नहीं। बहरहाल ब्रम्हा जी मुझे माफ कर देना, इसलिए कि आपके सिध्द ब्रह्मास्त्र से कलयुग की नामाकूल चप्पल की तुलना करने की गुस्ताखी की है, लेकिन मुझे तो यही लगता है कि किसी की अति से दुखी लोगों के लिए कलयुग में चप्पल से अनूठा कोई अस्त्र नहीं हो सकता। लोग भी अब इंतजार में हैं कि अगली चप्पल किस महा प्रसिध्द हस्ती पर फेंकी जाएगी ?


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