यही तो कला है, बाकी सब विज्ञान

Posted 12:48 am by व्‍यंग्‍य-बाण in लेबल:
साहब मोहल्ले में नए-नए आए थे। उनकी चालढाल, रहन-सहन, अदाएं, नखरे लोगों को हजम नहीं हो पाते थे। दरअसल हाजमोला खाने से पेट का खाना तो हजम हो सकता है, बाकी चीजें नहीं। तो साहेबान, रोज नई नई गाडियों में सवार होकर आते, मोहल्ले भर में दो तीन बार अपनी गाड़ी घुमाते और फिर घर के अंदर घुस जाते। मैं भी ठहरा खबरनवीस, साहब की चर्चा लोगों के मुख से सुन सुनकर मेरे कान पक गए थे, चर्चा भी इतनी ज्यादा कि ब्रिटेन में हो रही राजशाही शादी के किस्से भी शर्मा जाएं। लिहाजा मैं भी झल्ला गया कि आखिर साहब हैं कौन सी हस्ती जो उनकी इतनी चर्चा पूरे मोहल्ले ही नहीं, शहर में भी फैली हुई है। जानखिलावन जासूस की तरह मैंने भी ठान लिया कि साहब के बारे में सबकुछ पता करना है। सबसे पहले तो उनके बंगले के सामने पहुंचा। इधर उधर ताका-झांका, फिर गेट के भीतर बैठे दिख रहे संतरी को धीरे से आवाज लगाई। संतरी गेट के पास आकर खड़ा हो गया।
मैंने कहा-अरे मुसद्दी भाई, ये नए साहब कौन हैं, कुछ बताओ तो सही। संतरी ने कान में धीरे से फुसफुसाकर साहब के बारे में बताया। साहब की पहुंच और कलाओं को सुनकर मैं आश्चर्यचकित हो गया। फिर भी सोचा कि अब साहब के दफ्तर का भी जरा हाल-चाल देख लूं। सरकारी दफ्तरों में वैसे भी आए दिन जाना पड़ता है, तो वहां के बड़े साहबों आई मीन चपरासियों से मेरी काफी जान पहचान भी है। किसी भी साहब के बारे में चपरासी से अच्छी जानकारी अन्य कोई नहीं दे सकता। यही तो कला है बाकी सब विज्ञान है। तो मैंने साहब के दफ्तर पहुंचकर उनके कमरे के बाहर बैठे चपरासी को पुचकारा, किसी तरह लहटाया और साहब के कमरे में प्रवेश किया। मैंने कहा-साहब जी नमस्कार। फाईलों पर कुछ लिख रहे साहब ने सिर उठाकर मुझे देखा, फिर बेरूखी भरे अंदाज में सिर हिलाया और कहा - कहिए। मैंने अपना परिचय दिया। वे अपनी फाईलों पर लिखते हुए व्यस्त रहे। मैंने कमरे में नजर दौड़ाई। एक कोने में चाय काफी बनाने वाली मशीन, दूसरे कोने में प्यारा सा फ्रिज, साहब की टेबल से कुछ दूर एक कम्प्यूटर रखा हुआ था। मैं तो हैरान हो गया साहब के ठाठ देखकर। तभी एक बाबू ने कई फाईलें लेकर कमरे में प्रवेश किया। साहब के सामने फाईले रखकर उन्हें नमस्कार किया। साहब ने सिर हिलाया और चपरासी से कहा - ठीक है सामने वाली पार्टी को घर पर भेज देना, बाकी सब मैं देख लूंगा। मैं हैरान सा साहब की स्टाईल देख रहा था। साहब की कलाएं तो चन्द्रमा की कलाओं से ज्यादा तेज थीं। फिर मैंने साहब से विदा लिया और उनके कमरे से बाहर हो गया। चपरासी ने पूछा-क्या हुआ भईये। मैने कहा- साहब तो कुछ कहते ही नहीं। चपरासी ने कहा-राज की बात बताउं भईये, उन्हें फाईलें निपटाना अच्छी तरह आता है, किसी भी तरह का गड़बड़झाला हो, लंद-फंद का झमेला हो, साहब बिंदास होकर सबका काम कर देते हैं। लक्ष्मी जी के भक्त हैं, उनका आदेश कभी टालते नहीं। तभी तो साहब के बंगले के बाहर रोज नई-नई गाड़ियां खड़ी दिखती हैं। उद्योगपति आगे-पीछे फिरते हैं, साहब के अंदर जबरदस्त कला है। जब भी कोई उपरवाला साहब आता है, उसे चिकनी चुपड़ी, बड़ी-बड़ी बातें करके, सेवा-सत्कार करके वापस भेज देते हैं, यह उनका विज्ञान है।
सच ही था जो चपरासी बता रहा है, साहब का रूआब, अदा कुछ अलग ही थे। कुछ दिन बीते, साहब हमेशा चर्चा में ही रहे, जैसे जैसे पुराने होते गए, चापलूसों का हुजूम भी बढ़ता गया। किसी न किसी कारनामें से साहब सुर्खियों में रहते। साहब चिकने घड़े थे, जितना पानी डालो, फिसल ही जाता था। उनकी प्रसिध्दि को दाग तो बहुत लगे। पर वे लक्ष्मीभक्ति से काफी कुछ हासिल कर चुके थे। लोगों को इंतजार होने लगा कि आखिर कब इनके रूआब का सूरज अस्त होगा। लेकिन मैं एक और बात सोच रहा हूं कि देश भर में ऐसे कितने साहब होंगे जो अपनी ऐसी कलाओं से आम जनता का हक चूस रहे हैं। इस खौफ से परे कि अति का अंत कभी न कभी होना है। अपनी कला दिखाकर हासिल किए गए ऐशो आराम, रूतबा, रूआब स्थाई नहीं होते। कुछ चीजें बूमरेंग की तरह होती हैं, घूम फिरकर वापस उसी के पास लौट आती हैं, जो इन्हें दूसरों पर फेंकता है। यह विज्ञान है। इसलिए कला दिखाने वालों, सावधान हो जाओ कि अब देश का विज्ञान भी तरक्की पर है। जिस दिन विज्ञान मूड में आ गया सारी कलाएं धरी रह जाएंगी।


3 comment(s) to... “यही तो कला है, बाकी सब विज्ञान”

3 टिप्पणियाँ:

Khushdeep Sehgal ने कहा…

जैसे 1977 में सुरेश कलमाड़ी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री की गाड़ी पर चप्पल फेंकी थी...तीन दिन पहले मध्य प्रदेश के कपिल ठाकुर ने कलमाड़ी के ऊपर चप्पल फेंकी...

जय हिंद...



डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

बहुत पैनी चुटकी....
"कुछ चीजें बूमरेंग की तरह होती हैं, घूम फिरकर वापस उसी के पास लौट आती हैं, जो इन्हें दूसरों पर फेंकता है। यह विज्ञान है। इसलिए कला दिखाने वालों, सावधान हो जाओ कि अब देश का विज्ञान भी तरक्की पर है। जिस दिन विज्ञान मूड में आ गया सारी कलाएं धरी रह जाएंगी।"
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी



BrijmohanShrivastava ने कहा…

सर मेरा तो हाजमोला से भी खाना हजम नहीं होता। बिल्कुल शर्मा गये होंगे शर्माना ही चाहिये राजशाही शादियों को। साहबों की कलायें चन्द्र कलाओं से तेज होतीं ही है। अब तो वाकई अति हो ही चुकी है । विज्ञान को मूड में आना ही चाहिये।
शानदार व्यंग्य रचना



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