मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती। मगर हमारे देश की मिट्टी को आजकल क्या हो गया है। सोना, हीरा, मोती तो पीछे रह गए नेताओं की खरपतवार मतलब पैदावार ज्यादा ही होने लगी है। राजनीतिक दलों की बढ़ती संख्या और नेताओं की अधिक पैदावार ने कई तरह के भ्रम पैदा कर दिए हैं। पता ही नहीं चलता कि कौन किस दल का नेता है। अवसरवादिता की राजनीति ने भी नेतागिरी की महिमा को तेजी से बढ़ाया है। मुद्दा भ्रष्टाचार का हो या कालेधन का या फिर किसानों पर हो रहे अत्याचार का, अवसर की बहती गंगा में सिर्फ हाथ धोने नहीं, बल्कि घंटों तक डुबकियां लगा-लगाकर नहाने के लिए नेतागण तैयार रहते हैं। ऐसे ही हमारे क्षेत्र के एक नेताजी भी हैं। बिजली बनाने वाले उद्योग ने उनकी जमीन नहीं खरीदी, तो बैठ गए किसानों की आड़ लेकर आंदोलन पर। गरीब भूमिपुत्रों के हितवा बनकर कई दिनों तक माईक पर हल्ला मचाते रहे, उद्योग प्रबंधन का मुर्दाबाद करते रहे। महीने भर बाद उन्होंने पाला बदल दिया, किसान वहीं के वहीं रह गए, नेताजी की नेतागिरी चमक गई और वे उद्योग प्रबंधन के करीबी हो गए। अब अपने लोगों को ठेका, नौकरी दिलाने का काम भी शुरू कर दिया है। देखा जाए तो यह एक तरह का दोगलापन है, लेकिन नेतागिरी का कोई सुर नहीं होता, मुंह-पूंछ और जबान नहीं होती, इसलिए मौकापरस्त बनना ही नेतागिरी का सबसे बड़ा गुण है। मौका मिला, स्वार्थ सिध्द कर लिया, राजनीति की भाषा में इसे कूटनीति कहते हैं, मस्त रहो मस्ती में, आग लगे बस्ती में। दरअसल बढ़ती राजनीति का एक और कारण भी है। पहले सिर्फ नेता राजनीति करते थे, अब तो हर क्षेत्र में राजनीति की बयार बह रही है, अधिकारी, कर्मचारी, पत्रकार, व्यपारी, वकील भी राजनीति की महिमा से बच नहीं सके हैं। इसलिए हमें तो लगता है कि जिस तरह ईश्वर सर्वव्यापी है, कण-कण में है, उसी तरह राजनीति भी सर्वव्यापी हो गई है। अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग शुरू की तो उस पर राजनीति शुरू हो गई। भले ही भ्रष्टाचार और महंगाई से त्रस्त आम लोगों ने बढ़ चढ़कर अन्ना के आंदोलन को हवा दी, लेकिन नेताओं ने उनके आंदोलन का पहिया पंक्चर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब बाबा रामदेव के आगामी सत्याग्रह से सरकार को झुरझुरी आने लगी है। अरे भाई, सत्तासीन पार्टी की डुगडुगी बने राजा साहब, इस पर कोई टिप्पणी नहीं करोगे क्या ? वैसे भी आजकल यूपी की मादाम की नेतागिरी पर देश के लोगों की नजर है। भट्टा पारसौल में युवराज का दखल उनके आंखों की किरकिरी बन ही चुका है। देखना यह है कि नेतागिरी चमकाने के स्वर्णिम समय का लाभ कौन-कौन उठा पाते हैं। क्या मायाराज-मुलायम कुनबे के बीच युवराज की राजनीति चमक पाएगी ?

इक चतुर नार, करके सिंगार, इक चतुर नार बड़ी होशियार, दूरदर्शन चैनल पर सुबह-सुबह यह गाना दिखाया जा रहा था। मैं पड़ोसन के मजे ले रहा था, मेरा मतलब है पड़ोसन फिल्म के गाने का आनंद, (अगर पत्नी महोदया ने सुन लिया कि पड़ोसन का आनंद ले रहे थे, तो पूरा घर सिर पर उठा लेगी।) श्रीमती जी ने चाय लाकर टेबल पर पटकी और आंखें तरेरते हुए कहा, जल्दी से चाय पीजिए और बाजार से जाकर सब्जी लाईए। ये चतुर नार का राग अलापना बंद कीजिए। मैंने बड़े प्यार से पत्नी को पुचकारते हुए कहा अरी भागवान, तुमने शायद अपने आपको यानि नारी शक्ति को पहचाना नहीं है। पत्नी ने मुझे इस तरह देखा, जैसे मैं कोई अजूबा हूं। मैंने फिर अपना तीर फेंका, अरे तुमने देखा नहीं, चुनाव में जो नतीजे आए हैं, नारियों ने राजनीति में कितनी उठापटक मचा दी है ? जया अम्मा का तम्मा तम्मा हो गया और ममता दीदी का राजनीतिक सफर सुपर डीलक्स रेल की तरह दौड़ने लगा है।
एकता कपूर के सीरीयल की बात होती तो पत्नी महोदया सारा कामकाज छोड़कर घंटों तक उसका श्रवण करती। पर उन्हें राजनीति में कोई रूचि नहीं थी, सो हुंह कहते हुए किचन की ओर रूख कर लिया। मैं भी ठहरा मुंह की बीमारी से ग्रसित प्राणी, कोई यदि फोन पर मुझसे एक पंक्ति का सवाल भी पूछता था तो मैं उसे दिन, समय, घटना, अपने विचारों सहित पूरी कहानी-किस्सा सुनाए बगैर नहीं रह पाता, आखिर अपने ज्ञान का भंडार कहां और किस पर लुटाउं ? लिहाजा आदत जाती नहीं थी। पत्नी को मेरे अंदर छलक रहे ज्ञान से कोई मतलब नहीं था, चौका चूल्हे, गहने सिंगार और नारी फेम धारावाहिकों से उबर पाती, तभी तो उसे पता चलता कि नारी कितनी भारी है, जिसने 34 बरस के लाल को पीला करके रख दिया।
बहरहाल मैं बाजार की ओर सब्जी लेने के लिए निकल लिया। रास्ते में मिल गए मेरे एक लंगोटिया यार, जीवन में कभी लंगोटी पहनी नहीं, फिर भी हम लंगोटिया थे। मित्र ने कहा, और सुनाओ क्या हाल है ? मैं तो नारी महिमा मंडित करने के लिए पहले से ही उबला जा रहा था, कोई इसे सुनने को तैयार हुआ, मानो कोई मनचाही मुराद मिल गई। मैंने कहा, क्या क्या बताउं मित्र, देश इन दिनों उथलपुथल से जूझ रहा है। नारी सशक्तिकरण चरम पर है। मित्र ने कहा, क्या हुआ, भौजाई ने फिर से तुम्हारा बाजा बजा दिया क्या। मैंने कहा, अरे मित्र पहले मेरी भी तो सुनो, देश में इन दिनों नारी राज चल रहा है, रामायण से लेकर महाभारत तक और अब भारतीय राजनीति पर भी नारी भारी पड़ने लगी है। शीला ताई और माया मैडम तो पहले से ही राजकाज संभाल रही थीं, अब ममता दीदी और जया अम्मा ने भी अच्छे अच्छों को धूल चटा दी। वैसे भी देश की महामहिमा और केंद्र की सत्ता पर कठपुतलियां नचाने वाली मैडम ने नारी महिमा को मंडित किया है, यह अलग बात है कि राडियों और राखियों ने नारी महिमा को थोड़ा चूना लगाया है। लेकिन ओव्हरआल नारी का सबलापन अब देश दुनिया में दिखने लगा है। मित्र ने कहा, तो इसमें नया क्या है ? सदियों से नारी अपनी करामात दिखाती रही है। मैंने तनिक आवेश में आते हुए कहा, अरे तुमने अभी तक ठीक से पहचाना नहीं नारी शक्ति को, जब अबलापन का चोला नारी उतार फेंकती है, तो वह रणचंडी बन जाती है। महाभारत के कौरवों का नाश करा देती है। विश्वामित्र की तपस्या पर पानी फेर देती है। मित्र ने कहा बस, बस आज इतना ही, बाकी कल सुनेंगे। मुझे भी याद आया कि अगर समय पर सब्जी लेकर घर नहीं पहुंचा, तो घर में महाभारत मच जाएगी, रामायण के राम ने चौदह बरस वनवास झेला था, कलयुग में शार्टकट का जमाना है, लिहाजा मुझे दिन भर का वनवास झेलना पड़ेगा, रणचंडी ने अगर बेलन उठा लिया तो फिर खैर नहीं, महारानी लक्ष्मीबाई बनने में देर नहीं लगेगी। मैं तुरंत बाजार की तरफ भागा, वहां से आनन फानन सब्जी खरीदी और वापस घर पहुंचकर ही दम लिया। नारी शक्ति से मैं तो आए दिन परिचित होता रहता हूं, आपको भी नारी महिमा का कुछ ज्ञान हासिल हुआ या नहीं ?

यह तो अच्छा हुआ कि अगले कुछ दिनों में बाबू साहब सात फेरों के सात वचन लेने का जुगाड़ कर चुके हैं, ससुराल पक्ष भी मजबूत था, सो जिंदगी की आधी फिकर मिट गई थी। वैसे भी आजकल लोगों को अपना ससुराल अकबर का खजाना लगने लगा है, जब जी चाहा, जितना चाहा, खजाने से निकाल लिया। यह अलग बात है कि मैं अब तक इस खजाने का सुख नहीं पा सका हूं।
दूल्हा बिकता है फिल्म में राज बब्बर अपनी मजबूरियों की वजह से बिक जाता है, पर अब तो बिना मजबूरियों के ही लोग अपने सुपुत्रों के लिए तोल मोल के बोल करने को दुकान खोले तैयार बैठे हैं। दहेज में क्या-क्या चाहिए, इसकी बड़ी सी फेहरिस्त बना कर वधु पक्ष को इस तरह सौंप देते हैं जैसे वह किसी फाईव स्टार हाटल का मेनू कार्ड हो। भले ही निजी स्कूल, प्रशिक्षण संस्थान, डाक्टर अपनी सेवाओं की फीस अब तक फिक्स करें, पर आधुनिकता की बढ़ती चकाचौंध में दूल्हों के रेट लगभग तय हो चुके हैं। लड़का किसी सरकारी दफ्तर में चपरासी है, रेट 2 लाख रूपए, शिक्षाकर्मी है-तीन लाख, क्लर्क है-चार लाख, अधिकारी है-पांच लाख, इंजीनियर, डाक्टर है- 8 से 10 लाख, उससे भी उंचे पद पर है तो 10 से 25 लाख रूपए तक मूल्यवान है। आखिर मां-बाप ने पैदा किया, उस पर खर्च किया, पढ़ाया लिखाया, खिलाया पिलाया, तो उसका हर्जाना कौन देगा ? मेरे एक मित्र की बहन की मंगनी हुई तो लड़के वालों ने कोई दहेज नहीं मांगा, मुझे आश्चर्य होने लगा, वाह भाई, ये तो कमाल हो गया। इतना अच्छा परिवार तो हमें हजारों क्या लाखों में एक मिलेगा। जब मैंने मित्र को बधाई दी, तो मित्र महोदय का चेहरा उदास हो गया। मैंने कहा, यार, ये उदासी क्यों ? मित्र ने कहा-लड़का इंजीनियर है, आलीशान मकान है, बंगला है गाड़ी है, खाता पीता परिवार है। लेकिन उसके घरवालों ने कह दिया कि जो कुछ भी दोगे वह तुम्हारी बहन का ही होगा। अगर कार नहीं दोगे तो वह अपने पति के साथ मार्केटिंग करने कैसे जाएगी, पचीस-पचास तोले स्वर्ण आभूषण के बिना तो वह कहीं समाज में उठ बैठ नहीं सकेगी, दो-चार लाख उसके हाथ में नकद नहीं रहेंगे तो क्या वह बार बार अपने पति के सामने हाथ फैलाएगी ? बस हमें तो कुछ नहीं चाहिए, ये सब तो तुम्हारी बहन के काम ही आएगा, हमारे पास तो किसी चीज की कमी नहीं है।
दहेज लेने का यह नायाब तरीका मुझे तो पहली बार ही सुनने में आया था, मित्र के सिर पर उसके होने वाले समधियों ने चांदी का जूता मारा था। मैं अपने कमरे में बैठा मित्र के साथ विचार विमर्श कर ही रहा था कि दूसरे कमरे से मेरी अर्धांगिनी की कौए की तरह सुमधुर आवाज आई, अजी सुनते हो, अब ऐसे ही बैठे रहोगे कि कुछ करोगे भी। मैंने पूछा, क्या हुआ भागवान। पत्नी ने फिर अपना कंठ खोला - तुम्हें याद नहीं कल ननद जी को देखने आने वाले हैं, लड़का शिक्षाकर्मी है, समधियों को देने के लिए कुछ दान दहेज खरीदने जाना है कि नहीं ? मैंने मित्र को चाय पिला कर विदा किया, फिर पत्नी से कहा, हमारी शादी जल्दी हो गई है क्या ? क्यों जी, अब होती तो क्या होता। कुछ नहीं, बस सोच रहा हूं कि इस दौर में शादी होती तो कम से कम मैं दो चार लाख का आसामी तो होता, ससुर जी से मिली मोटरसायकिल पर इठलाता, तुम्हें घुमाने ले जाता, मेरा तो नुकसान हो गया ? पत्नी तुनक गई - कैसा नुकसान, वह तो अच्छा हुआ कि मेरे पिताजी ने तुम्हें पसंद कर लिया, तुम्हारे गले बांध दिया, वरना तुम तो कुंवारे ही रह जाते।
मैंने शुक्र मनाया कि चलो मेरे ससुर जी को कुछ रहम तो आया और मुझे अपनी चहेती सौंप दी थी। अब मैं आइडिये की जुगाड़ में हूं कि मेरे ससुरे ने पंद्रह साल पहले जो मेरा नुकसान किया था, उसकी वसूली कर सकूं, आपके पास कोई आईडिया है क्या ?

मैं समय हूं, सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग, सबके इतिहास का मैं गवाह रहा हूं। देवों, दानवों, मानवों की जीवनशैली, रहन-सहन और कर्म-दुष्कर्म का हिसाब भी है मेरे पास।
कलयुग में हो रही काली करतूतों का काला चिट्ठा मैं संजोकर रखता हूं। अन्य युगों में तो ऐसे दानव हुए ही नहीं, जैसे इस युग में हुए हैं। विदेशों में काला धन जमाकर, सत्ता की कुर्सी पर बैठकर इठलाते हुए, गरीबों के हक का खून चूसकर अमानुष को भी पीछे छोड़ देते हैं। शिवजी ने एक भस्मासुर पैदा किया, लेकिन कलयुग में तो हर जगह भस्मासुर रक्तबीज की तरह बढ़ते जा रहे हैं।
मैं हड़बड़ाकर उठा, ये अचानक महाभारत सीरीयल में सुनाई देने वाली भारी-भरकम आवाज मेरे सपने में कैसे ? काफी देर तक सोचता रहा, फिर मैं तैयार हो कर दफ्तर के लिए निकल पड़ा। दफ्तर पहुंचते ही सामना हुआ राजेश्वर बाबू से। आंखों पर चश्मा चढ़ाए हुए वे अपनी ड्यूटी के वक्त भी दिन भर मुंह में पान का बीड़ा भरे रहते थे और भैंस की तरह जुगाली करते रहते थे। जैसे ही मैं दफ्तर पहुंचा, उन्होंने अपनी खीसें निपोरते हुए कहा- क्या भाई साहब, आज तो आप खूब जंच रहे हो। मैंने कहा - कुछ खास नहीं, सब सामान्य है, तुम बताओ, खुशी से इतने काहे फूले जा रहे हो भई, कोई लाटरी लग गई क्या ? राजेश्वर बाबू किसी फिल्म के निर्देशक की भांति गंभीर होते हुए बोले - देखो भई अंतर्राष्ट्रीय परिदृष्य देखो, क्या तुम्हें नहीं लग रहा है कि देश में इन दिनों काफी बदलाव आ रहे हैं। मैंने कहा - इसमें क्या खास बात है। हाथ नचाते हुए वे बोले - अरे वाह, दुनिया भर की लिखते हो, तुम्हें इतना भी नहीं मालूम कि फिर से एक बार शिवजी-भस्मासुर वाली कहानी रिपीट हो गई। एक बार भस्मासुर को शिवजी ने वरदान दे दिया था, जिसके सिर भी हाथ रखोगे तो वह भस्म हो जाएगा। उसके बाद भस्मासुर का दिमाग फिर गया और वह शिवजी को ही कल्टी करने में भिड़ गया था। ऐसे ही दुनिया के सबसे मोस्ट वांटेड लादेन भाई साहब को अमेरिका ने खूब शह दी, बाद में जब उसने अमेरिका के सिर पे हाथ रखकर उसे भस्म करना शुरू किया, तो क्या हुआ, देख लिया।
मैंने भी अपना ज्ञान बघारते हुए उसे बताया, अरे तुम्हें मालूम नहीं, लिट्टे का सच भूल गए क्या, जिसने उन्हें शह दी उसे ही मिटाने चले, बाद में प्रभाकरण का क्या हुआ ? सबक यही है कि भस्मासुर बनने की कोशिश न करो। राजेश्वर बाबू ने फिर से एक तीर छोड़ा - लेकिन भाई साहब, एक बात समझ में नहीं आई कि आखिर लादेन को समुद्र के अंदर काहे दफनाया गया ?
मैंने अपने ज्ञान चक्षुओं को मिचकाया, फिर कहा, अरे बांगड़ू, रामसे ब्रदर्स की फिल्म नहीं देखी है क्या ? जिस तरह भूत-पिशाच को मारकर दफनाने के बाद कुछ तांत्रिक उसे फिर से जिंदा कर देते हैं और वह फिर से आतंक मचाने लग जाता है। उसी तरह अगर कल को लादेन के पनाहगार, खैरख्वाह उसे जिंदा करने लग भी गए, तो उसका कोई फायदा नही होगा।
यही तो महामहिम ओबामा की चतुराई है, जिसने रामसे ब्रदर्स की भूतहा फिल्मों से सबक लेते हुए आतंक के पिशाच लादेन को गहरे समुद्र में इसलिए दफना दिया, कि अब अगर उसे किसी ने जिंदा भी कर दिया, तोे पानी के उपर आकर सांस लेने से पहले ही उसका दम घुट जाएगा। यह सही है कि अभी आतंक के कई भूत-पिशाच बाकी हैं, लेकिन जैसे भूतकाल में सद्दाम निपट गए, वर्तमान में लादेन, भविष्य में फिर किसी भस्मासुर की बारी होगी।