मनमोहन-मोंटेक, एक के साथ एक फ्री

Posted 10:16 pm by व्‍यंग्‍य-बाण in लेबल: , ,
व्यंग्य -

यह प्रचलन आजकल हमारे देश में तेजी से बढ़ा है, बाई 1, गेट 1 फ्री यानि एक खरीदो, एक मुफ्त मिलेगा। बढ़िया है, वैसे भी देश में मुफ्तखोरी चरम पर है। लोग बैठे-ठाले मुफ्त का माल हजम करने में पीछे तो रहना नहीं चाहते। मुफ्तखोरी के ऐसे किस्से एक नहीं, हजार मिलेंगे। मेरे एक मित्र की पिछले साल शादी हुई, तो उन्हें पत्नी के साथ मुफ्त में साली भी मिल गई। हुआ यूं कि साली साहिबा उसी शहर में कालेज में पढ़ती थी, जहां उसकी बहन की शादी हुई थी। लिहाजा उसने अपनी बहन के घर डेरा जमा लिया, मित्र महोदय जब भी दफ्तर से घर आते, तो पत्नी सेवा में लगी रहती और वे साली संग बतियाते, वैसे भी मुफ्त का माल हर किसी को अपनी तरफ खींच ही लेता है। ऐसे में होते-होते दोनों इतने घुल मिल गए कि दोनों एक दिन घर छोड़कर भाग गए और पत्नी अपने करम पीटती अकेली रह गई।
हमारे पड़ोस में रहने वाले एक अफसर महोदय भी कुछ ऐसे ही मुफ्तखोरी समिति के सदस्य थे, उन्हें तो हर चीज मुफ्त में चाहिए थी, चाहे वह भाजी-तरकारी हो या सोना-चांदी, कपड़े-लत्ते। किसी भी दुकान पर जाते, तमाम चीजें उलट-पलट कर देखते और झोले भर-भर के चीजें दुकानदार से ले आते, बदले में किसी मातहत को फोन कर कह देते कि फलां दुकानदार का बिल अदा कर दो। बेचारा कर्मचारी, अफसर की मुफ्तखोरी से परेशान।
इसी तरह का हाल-चाल इन दिनों हमारे देश का भी है, मनमोहना से मुग्ध जनता उनके कई मंत्रियों-संतरियों के तमाम घपलों-घोटालों के बावजूद किसी तरह उन्हें झेल ही रही है, क्योंकि गड़बड़झाले के छींटे डायरेक्ट उन पर नहीं पड़े हैं। लेकिन मोंटेक जी महाराज ने तो कमाल कर दिया, गरीबी की नई परिभाषा देकर। 32 रूपए प्रतिदिन यानि एक हजार रूपए प्रतिमाह कमाने वाला कोई भी व्यक्ति गरीब नहीं हो सकता। जब उन्होंने ऐसा कहा तो देश भर में उनकी किरकिरी करने के लिए लोग पीछे पड़ गए। अरे भाई, लोगों ने यह समझा ही नहीं कि आखिर योजना आयोग का काम ही है योजना बनाना। इतने वर्षों में गरीबी कम नहीं कर सके, तो जनता को अमीर बताने की योजना ही बना डाली। अब इसमें गलत क्या है, आजकल तरह-तरह के मैनेजमेंट कोर्स चल रहे हैं, जिसमें बताया जाता है कि बड़ी सोच का बड़ा जादू, सोचो-बोलो-पाओ, पावर अनलिमिटेड, सफलता के सात मंत्र आदि आदि। हमें तो लगता है कि देश की जनता को मुफ्त मिले मनमोहन के साथ, मुफ्त मिले मोंटेक ने ऐसा ही कोई मैनेजमेंट कोर्स देखकर उसे अपनाने की ठान ली है। दरअसल बड़ी सोच का बड़ा जादू यही है कि बड़े सपने देखो और कुछ समय बाद उसका रिजल्ट पाओ, लेकिन यह तभी संभव है जब नीयत, लगन, इच्छाशक्ति, नजरिया भी साथ हो, सिर्फ सपने देखते रहने से तो शेखचिल्ली भी सपने में अमीर बन गया था। मोंटेक साहब को तो कम से कम ऐसे हसीन सपनों से बचना चाहिए। क्योंकि देश की बहुत बड़ी आबादी आज के एक समय खाकर ही जीती है। क्या मनमोहन-मोंटेक या कोई अन्य मंत्री-संतरी 32 रूपए प्रतिदिन के खर्च पर अपना और अपने परिवार का गुजारा कर सकते हैं ? यदि यह संभव है तो खुश हो जाईऐ कि हम सब अमीर हैं।



1 comment(s) to... “मनमोहन-मोंटेक, एक के साथ एक फ्री”

1 टिप्पणियाँ:

S.N SHUKLA ने कहा…

सुन्दर प्तथा सार्थक पोस्ट , आभार



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