महात्मा गांधी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
महात्मा गांधी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

महात्मा गांधी जी यानि एकमात्र, इकलौते हमारे भारत देश के सर्वाधिकार सुरक्षित राष्ट्रपिता। सिल्वर स्क्रीन से लेकर राजनीतिक गलियारों में बापू को एक नया आयाम मिला है उनके विचारों और आदर्शों को, जिसे गांधीगिरी का नाम दिया गया है। अब जब कभी किसी नेता की बात या मांगें नहीं मानी जाती तो उसे बापू की याद आ जाती है और वह गांधीगिरी करके सरकार को झुकाने की कोशिश करने लगता है। ये अलग बात है कि अण्णा जी इस युग के वास्तविक गांधीवादी समाजसेवी हैं। पर अधिकतर गांधीगिरी करने वालों के चेहरों के पीछे एक और चेहरा है। गांधीगिरी करते वक्त ऐसे लफ्फाज, मौकापरस्त और स्वार्थी लोगों के चेहरे के हाव-भाव देखते ही बनते हैं, ऐसा लगता है जैसे वे जन्म से ही बापू के समर्पित समर्थक रहे होंगे। राजकुमार हीरानी ने लगे रहो मुन्नाभाई में जो प्रयोग गांधीगिरी के किए, तो गांधीगिरी का शौक कईयों को लग गया, ऐसे में मेरे शहर के एक युवा नेता ने भी गांधीगिरी दिखाते हुए अपनी मांगें पूरी करवाने के लिए रास्ते से गुजर रहे वाहन चालकों व पैदल चलने वालों को गुलाब भेंट किए, ताकि उनकी मांगें न मानने वाले अफसरों, नेताओं का गेट वेल सून हो जाए। बुजुर्गों तथा परंपरावादियों से मैं यह सुन-सुनकर थक चुका हूं कि देश के लोग अब गांधीजी को भूल गए। कौन कहता है कि गांधी जी भुला दिए गए, ये जरूर हो सकता है कि उनके आदर्श, उनके विचारों का लोग पालन नहीं कर रहे या करना चाहते। लेकिन गांधी जी सर्वव्यापी हैं, जैसे कण-कण में भगवान है, ठीक उसी तरह हर जेब-जेब में बापू हैं। भले ही वे किसी के दिल में मिलें न मिलें पर बापू की तस्वीर हर किसी की जेब में मिल जाएगी हरे, लाल, नीले नोटों पर। बताईये भला, बापू को अगर भुला देते तो उन्हें अपनी जेब में थोड़े रखते !
सत्याग्रह से अंग्रेजी हुकूमत को हिलाने वाले बापू अब स्वार्थ साधने की चीज हो गए। मामला जमा नही ंतो गांधीगिरी कर लो, सेटिंग हो गई तो ठीक, वरना इसी बहाने कम से कम छवि तो सुधर जाएगी ! गांधीगिरी का नुस्खा बड़े शहरों से होते हुए कस्बों और गांवों तक पहुंच गया है। भारत की आत्मा गांवों में बसती है, कहने वाले बापू को शायद अंदाजा नहीं रहा होगा कि उन भोले-भाले गांववालों के नाम पर जब केन्द्र सरकार से गांधी की तस्वीर लगे लाखों करोड़ों रूपए निकलते हैं तो उसका महज 10 प्रतिशत हिस्सा ही वहां तक पहुंच पाता है यानि 10 प्रतिशत बापू ही गांव वालों तक पहुंच पाते हैं और 90 प्रतिशत बापू की तस्वीर वाले हरे-हरे नोट किधर जाते हैं, किसी अफसर, नेता के भारतीय बैंक एकाउन्ट में या फिर स्विस बैंक की शोभा बनते हैं ? जिस तरह पानी जीवन का अहम् हिस्सा है और पानी बचाने की मुहिम देश भर में चलती रहती है, इसके चलते कहावत भी गढ़ दी गई कि बिन पानी सब सून, पर मेरे विचार में तो गांधी के विचारों को आत्मसात करने की जरूरत है, उसे दिल में, दिमाग में बसाने की जरूरत है। जेब में रखे गांधी तो आज तुम्हारे पास, कल किसी और के पास चले जाएंगे, पर दिल में बसे गांधी को कोई कैसे चुरा सकेगा या छीन सकेगा ? गांधी जी हर तरह से हमारे जीवन में उपयोगी थे और रहेंगे, दिल में बसाया तो जीवन सुधर जाएगा, जेब और तिजोरियों के लायक समझोगे तो भी काम आएंगे। इसलिए नया नारा तो अब बिन गांधी सब सून है।