भ्रष्टम् शरणम् गच्छामि

Posted 2:20 am by व्‍यंग्‍य-बाण in लेबल: ,
सत्ता की कुर्सी पर बैठे आलम बरदारों को झटके पर झटके लग रहे थे, पहले अण्णा जी, बाद में बाबाजी ने सरकार को 440 नहीं बल्कि 880 वोल्ट के झटके दिए। अब इन झटकों का असर कम होता जा रहा है। दरअसल सवाल एक दो भ्रष्टों का नहीं है, हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे की आड़ में कम से कम हम चीन से उसकी विश्व प्रसिध्द दीवार तो उधार मांग ही सकते हैं और हो सकता है भ्रष्टाचारियों की सूची चस्पा करने के लिए तो चीन की 2 हजार किलोमीटर लंबी दीवार भी छोटी पड़ जाए! देश की अकूत संपत्ति कभी किसी आईएएस अफसर के घरों और बैंक लाकरों से मिल रही है, कभी जनता के सेवक नेताओं, तो कभी धर्म के ठेकेदारों के पास से। पर अपने देश की आधे से अधिक जनता गरीब है, किसलिए ? इसलिए कि कलयुग में तो भ्रष्टों की शरण में स्वर्ग बसता है बाबू साहब, अफसर भ्रष्ट नहीं होंगे तो भ्रष्टों के चेहरे की चमक कैसे बढ़ेगी, आसमान छूती इमारतों और आलीशान शानो-शौकत का क्या होगा!
मेरा एक मित्र भी पहले भ्रष्टाचार को लेकर खासा परेशान था। इस मुद्दे पर आए दिन वह भड़कता रहता था। भ्रष्टों को सूली पर चढ़ा देना चाहिए, फांसी पर लटका देना चाहिए, सरे चौराहे बांधकर हंटर लगाने चाहिए, जैसे लफ्ज उसके तकिया कलाम हो गए थे। एक बार उसका पाला भी सरकारी लोगों से पड़ गया। तहसील में प्रमाण पत्र बनवाने गया तो वहां के वंदनीय कर्मचारियों ने उसे इतने बार अपने दफ्तर के चक्कर लगवाए कि उसने तो प्रमाण पत्र बनवाने का इरादा ही छोड़ दिया। मुझसे कहा-यार, ये सरकारी सिस्टम आखिर है क्या, पचीस दिन हो गए एक प्रमाण पत्र के लिए, फिर भी नहीं बना। मैंने कहा-अरे बंधु, वेरी सिंपल, 25 मिनट में तेरा काम हो जाता, लेकिन तुमने वहां के सिस्टम को समझा ही नहीं या समझना नहीं चाहा। बात सिर्फ पचास-सौ रूपए की है, जिसके लिए तूने अपना हजारों रूपए कीमती वक्त बरबाद कर दिया।
मेरी बात मित्र को कुछ-कुछ समझ में आने लगी। दूसरे ही दिन वह चहकता हुआ मिला। क्या हुआ, बहुत लबलबा रहे हो मित्र, मैंने कहा, तो उसने तपाक से जवाब दिया - वाह यार, तेरा फार्मूला तो काम कर गया। दफ्तर के बाबू को गांधी जी के दर्शन करा दिए, तो फटाफट काम हो गया, पचीस नहीं, सिर्फ पंद्रह मिनट में।
मेरे मित्र को फार्मूला भा गया। आजकल वह भी एक सरकारी नौकरी में है और इस फार्मूले का भरपूर फायदा उठा रहा है। शाम को जब वह अपने दफ्तर से लौटता है, तो उसकी जेबों में भरपूर हरियाली होती है।
ऐसे ही एक सरकारी कार्यालय का कोड वर्ड बन गया था आरबीआई। जब भी कोई व्यक्ति आरबीआई का पालन नहीं करता था, उसकी फाईल अटका दी जाती थी। अफसर सबके सामने खुलेआम कहता था, आरबीआई का कागज नहीं लगाया है, कैसे फाईल पास होगी। बहुत दिनों तक मैं परेशान रहा कि आखिर ये आरबीआई क्या है। फिर मैंने वहां के एक खासमखास कर्मचारी को पटाया, उसे एक गांधी जी की तस्वीर से सुसज्जित हरा पत्ता थमाया और पूछ लिया। तब मेरी समझ में आया कि आखिर यह आरबीआई क्या बला है। लेकिन मैं भी आपको मुफ्त में नहीं बताउंगा आरबीआई का मतलब। जिन बंधुओं को आरबीआई की महिमा समझ में न आए वे मुझसे संपर्क करके जानकारी ले सकते हैं।


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