नशा ही नशा है हुजूर !

Posted 12:06 am by व्‍यंग्‍य-बाण in
देश नशे के आलम में मदमस्त है, कुछ दिनों पहले किक्रेट का नशा लोगों के सिर चढ़कर बलबला रहा था, अब अण्णा का नशा चढ़ने लगा है बंधुओं को। सुन मेरे बंधु रे, सुन मेरे मितवा, सुनो हीरालाल रे, ये नशा भी अजब चीज है, जिसे चढ़ जाए तो उतारा लिए बिना उतरता ही नहीं। शराबी में अमिताभ बच्चन पर फिल्माया और किशोर कुमार का गाया गीत कितना सटीक है इसका अंदाजा है आपको ? अगर नहीं है तो एक बार जरूर सुनिए ’‘नशा शराब में होता तो नाचती बोतल, नशे में कौन नहीं है मुझे बताओ जरा‘‘। जिस तरफ देखो नशा ही नशा है। नशे के प्रकार अलग हो सकते हैं, मायने अलग हो सकते हैं, तरीके जुदा हो सकते हैं, पर नशे से कोई बचा नहीं है।
मेरा पड़ोसी लल्लू प्रसाद भी नशे में चूर है, मदहोश है। जब से सगाई हुई तो उस पर मोबाईल का नशा छाया हुआ था, डेढ़ घंटे, दो घंटे, तीन तीन घंटे तक मंगेतर से बतियाता रहता था, जाने क्या-क्या बातें करता होगा, सोचते हुए मैंने एक दिन पूछ ही लिया। लल्लू प्रसाद ने अपनी खींसे निपोरते हुए बताया अरे भईया, अभी तो सगाई हुई है, शादी में कुछ महीने तो लगेंगे ही। फिर आजकल किसी का क्या भरोसा, वेलेंटाईन डे तो साल में एकाध दिन ही मनता है, पर उसका नशा पूरे युवाओं में आठों पहर, चौबीसों घंटे, साल भर चढ़ा रहता है, कहीं दूसरे का नशा उस पर चढ़ गया तो मैं तो गया न काम से, इसलिए अपना नशा चढ़ाने की कोशिश करता हूं उस पर।
एक और पड़ोसी जुगनूराम को रोज टल्ली होने का नशा है, शाम को पीना शुरू करता है तो तीन घंटे से पहले उसके पैग खत्म नहीं होते। होली हो, दीवाली या कोई राष्ट्रीय त्योहार, बिन पिए तो उसका दिन शुरू ही नहीं होता। एक दिन मिल गया हूजूरे आला, पास की नाली में गिरे हुए, एक सुअर की पूंछ पकड़कर सहलाते हुए कह रहा था अरे पप्पू की मां, मुझे तो पता ही नहीं था कि तुम चोटी भी करती हो, ये क्या अभी तक इसमें खिजाब लगा रखा है, पूरा हाथ ही खराब हो गया। मैंने उसे फटकारते हुए कहा ‘ अरे नामाकूल, इतना ही नशा करने का शौक है तो डूब मर। उसने जवाब दिया ‘अरे भाई, कैसे डूब मरूं, नदी में डूबने गया तो वहां सिर्फ रेत ही रेत है, पानी तो करोड़पतियों को बेच दिया है सरकार ने, मोहल्ले के कुएं को पाट दिया है, तालाब में सिर्फ कीचड़ बचा है, जलकर के दाम म्यूनिस्पिल ने बढ़ा दिए हैं और सरकारी हैंडपंप से भी पानी नईं निकल रहा है, अब डूबने के लिए पानी बचा ई नई, तो ठर्रा पीकर दिल बहलाता हूं।
उसकी बातों से मेरा सिर बिना नशा किए ही चकराने लगा था। मैं सोच में पड़ गया कि ये बात तो सही कह रहा है कि दूध और पानी पीने के लिए मिले न मिले, ठर्रा हर गली, कूचे, मजरेटोले में मौजूद है। वैसे भी लोग अपने अपने नशे में खोए हुए हैं, सरकार के कारिंदे भ्रष्टाचार के नशे में मदमस्त हैं, उद्योगपति राजाओं, राडियाओं, कलमाड़ियों को पाकर मदहोश है, जनता के सामने लोटासन करके वोट पाए, अधिकार प्राप्त नेताओं को घोटाला करने का नशा है, मीडिया सनसनी के नशे में सराबोर है तो बालीवुड में आईटम सांग और कम कपड़े पहनने का नशा छाया हुआ है। लेकिन अब देश के पथभ्रष्ट तंत्र का नशा उतरने लगा है। अपने अण्णा बाबू ने देश के भ्रष्टाचारियों को उतारा लेने पर मजबूर कर दिया है। देखना अभी बाकी है कि राजनीतिक सरपरस्ती के नशे में चूर, लोकतंत्र को अपनी जेब में समझने वाले भ्रष्टों की मदहोशी टूट पाएगी ?



0 comment(s) to... “नशा ही नशा है हुजूर !”

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें