यह तो अच्छा हुआ कि अगले कुछ दिनों में बाबू साहब सात फेरों के सात वचन लेने का जुगाड़ कर चुके हैं, ससुराल पक्ष भी मजबूत था, सो जिंदगी की आधी फिकर मिट गई थी। वैसे भी आजकल लोगों को अपना ससुराल अकबर का खजाना लगने लगा है, जब जी चाहा, जितना चाहा, खजाने से निकाल लिया। यह अलग बात है कि मैं अब तक इस खजाने का सुख नहीं पा सका हूं।
दूल्हा बिकता है फिल्म में राज बब्बर अपनी मजबूरियों की वजह से बिक जाता है, पर अब तो बिना मजबूरियों के ही लोग अपने सुपुत्रों के लिए तोल मोल के बोल करने को दुकान खोले तैयार बैठे हैं। दहेज में क्या-क्या चाहिए, इसकी बड़ी सी फेहरिस्त बना कर वधु पक्ष को इस तरह सौंप देते हैं जैसे वह किसी फाईव स्टार हाटल का मेनू कार्ड हो। भले ही निजी स्कूल, प्रशिक्षण संस्थान, डाक्टर अपनी सेवाओं की फीस अब तक फिक्स न करें, पर आधुनिकता की बढ़ती चकाचौंध में दूल्हों के रेट लगभग तय हो चुके हैं। लड़का किसी सरकारी दफ्तर में चपरासी है, रेट 2 लाख रूपए, शिक्षाकर्मी है-तीन लाख, क्लर्क है-चार लाख, अधिकारी है-पांच लाख, इंजीनियर, डाक्टर है- 8 से 10 लाख, उससे भी उंचे पद पर है तो 10 से 25 लाख रूपए तक मूल्यवान है। आखिर मां-बाप ने पैदा किया, उस पर खर्च किया, पढ़ाया लिखाया, खिलाया पिलाया, तो उसका हर्जाना कौन देगा ? मेरे एक मित्र की बहन की मंगनी हुई तो लड़के वालों ने कोई दहेज नहीं मांगा, मुझे आश्चर्य होने लगा, वाह भाई, ये तो कमाल हो गया। इतना अच्छा परिवार तो हमें हजारों क्या लाखों में एक मिलेगा। जब मैंने मित्र को बधाई दी, तो मित्र महोदय का चेहरा उदास हो गया। मैंने कहा, यार, ये उदासी क्यों ? मित्र ने कहा-लड़का इंजीनियर है, आलीशान मकान है, बंगला है गाड़ी है, खाता पीता परिवार है। लेकिन उसके घरवालों ने कह दिया कि जो कुछ भी दोगे वह तुम्हारी बहन का ही होगा। अगर कार नहीं दोगे तो वह अपने पति के साथ मार्केटिंग करने कैसे जाएगी, पचीस-पचास तोले स्वर्ण आभूषण के बिना तो वह कहीं समाज में उठ बैठ नहीं सकेगी, दो-चार लाख उसके हाथ में नकद नहीं रहेंगे तो क्या वह बार बार अपने पति के सामने हाथ फैलाएगी ? बस हमें तो कुछ नहीं चाहिए, ये सब तो तुम्हारी बहन के काम ही आएगा, हमारे पास तो किसी चीज की कमी नहीं है।
दहेज लेने का यह नायाब तरीका मुझे तो पहली बार ही सुनने में आया था, मित्र के सिर पर उसके होने वाले समधियों ने चांदी का जूता मारा था। मैं अपने कमरे में बैठा मित्र के साथ विचार विमर्श कर ही रहा था कि दूसरे कमरे से मेरी अर्धांगिनी की कौए की तरह सुमधुर आवाज आई, अजी सुनते हो, अब ऐसे ही बैठे रहोगे कि कुछ करोगे भी। मैंने पूछा, क्या हुआ भागवान। पत्नी ने फिर अपना कंठ खोला - तुम्हें याद नहीं कल ननद जी को देखने आने वाले हैं, लड़का शिक्षाकर्मी है, समधियों को देने के लिए कुछ दान दहेज खरीदने जाना है कि नहीं ? मैंने मित्र को चाय पिला कर विदा किया, फिर पत्नी से कहा, हमारी शादी जल्दी हो गई है क्या ? क्यों जी, अब होती तो क्या होता। कुछ नहीं, बस सोच रहा हूं कि इस दौर में शादी होती तो कम से कम मैं दो चार लाख का आसामी तो होता, ससुर जी से मिली मोटरसायकिल पर इठलाता, तुम्हें घुमाने ले जाता, मेरा तो नुकसान हो गया न ? पत्नी तुनक गई - कैसा नुकसान, वह तो अच्छा हुआ कि मेरे पिताजी ने तुम्हें पसंद कर लिया, तुम्हारे गले बांध दिया, वरना तुम तो कुंवारे ही रह जाते।
मैंने शुक्र मनाया कि चलो मेरे ससुर जी को कुछ रहम तो आया और मुझे अपनी चहेती सौंप दी थी। अब मैं आइडिये की जुगाड़ में हूं कि मेरे ससुरे ने पंद्रह साल पहले जो मेरा नुकसान किया था, उसकी वसूली कर सकूं, आपके पास कोई आईडिया है क्या ?
दूल्हा बिकता है फिल्म में राज बब्बर अपनी मजबूरियों की वजह से बिक जाता है, पर अब तो बिना मजबूरियों के ही लोग अपने सुपुत्रों के लिए तोल मोल के बोल करने को दुकान खोले तैयार बैठे हैं। दहेज में क्या-क्या चाहिए, इसकी बड़ी सी फेहरिस्त बना कर वधु पक्ष को इस तरह सौंप देते हैं जैसे वह किसी फाईव स्टार हाटल का मेनू कार्ड हो। भले ही निजी स्कूल, प्रशिक्षण संस्थान, डाक्टर अपनी सेवाओं की फीस अब तक फिक्स न करें, पर आधुनिकता की बढ़ती चकाचौंध में दूल्हों के रेट लगभग तय हो चुके हैं। लड़का किसी सरकारी दफ्तर में चपरासी है, रेट 2 लाख रूपए, शिक्षाकर्मी है-तीन लाख, क्लर्क है-चार लाख, अधिकारी है-पांच लाख, इंजीनियर, डाक्टर है- 8 से 10 लाख, उससे भी उंचे पद पर है तो 10 से 25 लाख रूपए तक मूल्यवान है। आखिर मां-बाप ने पैदा किया, उस पर खर्च किया, पढ़ाया लिखाया, खिलाया पिलाया, तो उसका हर्जाना कौन देगा ? मेरे एक मित्र की बहन की मंगनी हुई तो लड़के वालों ने कोई दहेज नहीं मांगा, मुझे आश्चर्य होने लगा, वाह भाई, ये तो कमाल हो गया। इतना अच्छा परिवार तो हमें हजारों क्या लाखों में एक मिलेगा। जब मैंने मित्र को बधाई दी, तो मित्र महोदय का चेहरा उदास हो गया। मैंने कहा, यार, ये उदासी क्यों ? मित्र ने कहा-लड़का इंजीनियर है, आलीशान मकान है, बंगला है गाड़ी है, खाता पीता परिवार है। लेकिन उसके घरवालों ने कह दिया कि जो कुछ भी दोगे वह तुम्हारी बहन का ही होगा। अगर कार नहीं दोगे तो वह अपने पति के साथ मार्केटिंग करने कैसे जाएगी, पचीस-पचास तोले स्वर्ण आभूषण के बिना तो वह कहीं समाज में उठ बैठ नहीं सकेगी, दो-चार लाख उसके हाथ में नकद नहीं रहेंगे तो क्या वह बार बार अपने पति के सामने हाथ फैलाएगी ? बस हमें तो कुछ नहीं चाहिए, ये सब तो तुम्हारी बहन के काम ही आएगा, हमारे पास तो किसी चीज की कमी नहीं है।
दहेज लेने का यह नायाब तरीका मुझे तो पहली बार ही सुनने में आया था, मित्र के सिर पर उसके होने वाले समधियों ने चांदी का जूता मारा था। मैं अपने कमरे में बैठा मित्र के साथ विचार विमर्श कर ही रहा था कि दूसरे कमरे से मेरी अर्धांगिनी की कौए की तरह सुमधुर आवाज आई, अजी सुनते हो, अब ऐसे ही बैठे रहोगे कि कुछ करोगे भी। मैंने पूछा, क्या हुआ भागवान। पत्नी ने फिर अपना कंठ खोला - तुम्हें याद नहीं कल ननद जी को देखने आने वाले हैं, लड़का शिक्षाकर्मी है, समधियों को देने के लिए कुछ दान दहेज खरीदने जाना है कि नहीं ? मैंने मित्र को चाय पिला कर विदा किया, फिर पत्नी से कहा, हमारी शादी जल्दी हो गई है क्या ? क्यों जी, अब होती तो क्या होता। कुछ नहीं, बस सोच रहा हूं कि इस दौर में शादी होती तो कम से कम मैं दो चार लाख का आसामी तो होता, ससुर जी से मिली मोटरसायकिल पर इठलाता, तुम्हें घुमाने ले जाता, मेरा तो नुकसान हो गया न ? पत्नी तुनक गई - कैसा नुकसान, वह तो अच्छा हुआ कि मेरे पिताजी ने तुम्हें पसंद कर लिया, तुम्हारे गले बांध दिया, वरना तुम तो कुंवारे ही रह जाते।
मैंने शुक्र मनाया कि चलो मेरे ससुर जी को कुछ रहम तो आया और मुझे अपनी चहेती सौंप दी थी। अब मैं आइडिये की जुगाड़ में हूं कि मेरे ससुरे ने पंद्रह साल पहले जो मेरा नुकसान किया था, उसकी वसूली कर सकूं, आपके पास कोई आईडिया है क्या ?
1 comment(s) to... “ससुरा बड़ा पैसेवाला”
1 टिप्पणियाँ:
अच्छा व्यंग्य है. आभार.
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